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चलचित्र
राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
श्रीडूंगरगढ़ कस्बे के कुछ युवाओं ने मिलकर पं. मुखाराम सिखवाल के सान्निध्य (सभापति) एवं इन्द्रचन्द बिन्नाणी के संरक्षण में 1 जनवरी 1961 को राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की स्थापना की। युवाओं (जो अब प्रौढ़ हो चुके हैं) में एक उमंग थी कि कस्बे में भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के उन्नयन के लिए एक संस्था स्थापित हो। उनका उद्देश्य सफल रहा।
मखमलिया रेत के टीलों से घिरा कस्बा श्रीडूंगरगढ़ जो लम्बे समय से सिने-जगत् का आकर्षण व व्यावसायिक केन्द्र रहा है, विगत वर्षों से, साहित्यकारों, लेखकों, विचारकों, चिंतकों, इतिहासविदों एवं भाषाविदों का सिरमौर या लाक्षणिक रूप में छोटी काशी बना हुआ है। इस विचार-क्रान्ति का समूचा श्रेय जाता है स्थानीय संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति को।
राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ द्वारा अब तक केन्द्रीय साहित्य अकादमी, दिल्ली, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर,राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी,बीकानेर, संगीत नाटक अकादमी,जोधपुर, जवाहर कला केन्द्र, जयपुर, आई.सी.एच. आर, दिल्ली, मानव संसाध न विकास मंत्रालय, भारत सरकार, संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार जैसी अनेकानेक संस्थाओं के संयुक्त तत्त्वावधान में भाषा, साहित्य, संस्कृति, कला, इतिहास, शोध एवं जन-जागरण व सामाजिक सरोकारों से जुड़े न जाने कितने यादगार सम्मेलनों, समारोहों और संगोष्ठियों का आयोजन किया जा चुका है । संस्था की आयोजन-दृष्टि और स्वरूप को देश-प्रदेश के सम्भागी मुक्त-कण्ठ से सराहते
वर्ष 1961 में पुरोधाओं की मित्र-मण्डली द्वारा चाय की चुस्कियों के संग महज सांस्कृतिक वातावरण निर्माण के लिए गठित इस संस्था के स्थापक विचारकों ने भी शायद यह कल्पना नहीं की थी कि उनका यह तात्कालिक सांस्कृतिक दृष्टिकोण कालान्तर में एक वट-वृक्ष का रूप लेकर समूचे देश के शब्द-कमियों का अनुराग केन्द्र व विचार स्थल बन जायेगा।
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विचारशीलता की कर्म स्थली : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
सांस्कृतिक मूल्यों के संवर्द्धन व अनुरक्षण की भावना से स्थापित संस्था