डायरी

डायरी के पन्नों में पसरा गौरवशाली अतीत –

राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ द्वारा अब तक केन्द्रीय साहित्य अकादमी, दिल्ली, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर, संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर, जवाहर कला केन्द्र, जयपुर, आई.सी.एच. आर, दिल्ली, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार जैसी अनेकानेक संस्थाओं के संयुक्त तत्त्वावधान में भाषा, साहित्य, संस्कृति, कला, इतिहास, शोध एवं जन-जागरण व सामाजिक सरोकारों से जुड़े न जाने कितने यादगार सम्मेलनों, समारोहों और संगोष्ठियों का आयोजन किया जा चुका है । संस्था की आयोजन-दृष्टि और स्वरूप को देश-प्रदेश के सम्भागी मुक्त-कण्ठ से सराहते और प्रशंसित करते रहे हैं ।

वैचारिक प्रतिबद्धता और साहित्य की इस तपोभूमि के रूप में क्या सोचते और कहते हैं विद्वान अतिथि ? यही जानने का प्रयास है डायरी के पन्नों में दर्ज उनके इन उद्गारों में ।

साहित्य और वैचारिक प्रतिबद्धता की इस तपोभूमि में बार-बार आने को मन चाहता है ।

समिति के कार्य को देख कर लगा कि संस्था न केवल भाषा से सम्बंधित कार्य करनेमें सक्षम है, अपितु सांस्कृतिक व अन्य आयोजनों का निष्पादन करने में भी सफल है।

प्रेम शर्मा सहायक निदेशक (कला)
भाषा एवं सांस्कृतिक विभाग,
शिमला (111) हिमाचल प्रदेश
15.2.1988


यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इस छोटे कस्बे में सीमित साधनों से उत्साही साथियों ने नगर की साहित्यिक चेतना को प्रकाशित करने वाली ज्योति जगा रखी है

विष्णुदत्त शर्मा
अध्यक्ष,
राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर
26.2.1978


प्रगतिशील जनवादी मूल्यों को स्थापित करने के लिए जो आज रचनात्मक प्रयासों का एक क्रम चल रहा है, उसमें इस संस्था का योग सराहनीय ही नहीं, साहसिक भी है ।

डॉ. विमल
प्रोफेसर, हिन्दी विभाग,
जोधपुर विश्वविद्यालय, जोधपुर
20.12.1986


आज मैं अचानक राष्ट्रभाशा हिन्दी प्रचार समिति कार्यालय, श्रीडूंगरगढ़ पहुंचा । अतीव प्रसन्नता हुई कि एक छोटे कस्बे में जो निष्ठापूर्वक काम हो रहा है, वह कार्यकर्ताओं के उत्साह का द्योतक है ।

राजभाषा हिन्दी के साथ-साथ मातृभाषा राजस्थानी के प्रति भी उनमें जो समर्पण का भाव देखा, उससे हार्दिक प्रसन्नता हुई ।

डॉ.भूपतिराम साकरिया
रीडर, हिन्दी विभाग,
सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभविद्यानगर (गुजरात)।
4.5.1985


राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति साहित्यिक क्षेत्र में जो काज कर रहल, अकि से महत्त्वपूर्ण आ उदाहरणीय चिक । हिन्दीए नहि, राजस्थानी भाषा-साहित्यक संकलन संवर्धन में ऐहि संस्था उल्लेखनीय उपलब्धि छेक ।

मोहन भारद्वाज
(प्रख्यात मैथिली लेखक)
पटना (बिहार)
18.3.1985


संस्था के कार्यालय में आकर मुझे असीम आनन्द का अनुभव हुआ । यह संस्था अपने सीमित साधनों में हिन्दी सेवा का जो कार्य कर रही है, वह सर्वथा स्तुत्य एवं अभिनन्दनीय है ।

पद्मश्री क्षेमचन्द्र 'सुमन'
दिल्ली
 14.9.1985


समिति राष्ट्रीय सेवा का जो कार्य कर रही है, वह सराहनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है । जो रचनात्मक कार्य इसने किया है, वह अत्यन्त महत्त्व का है ।

अम्बालाल माथुर
(प्रख्यात मैथिली लेखक)
संपादक, 'दैनिक लोकमत'
बीकानेर


संस्था निश्चय ही महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है । संगोष्ठियों, सम्मेलनों और साहित्यिक-सांस्कृतिक विचार विनिमय के जरिये यह संस्था सांस्कृतिक माहौल का निर्माण करने की अनथक चेष्टा में जुड़ी हुई है । इस संस्था के साथ जुड़ कर इसकी गतिविधियों और संगोष्ठियों में शिरकत करके मुझे सार्थकता महसूस हुई और गहरा अपनत्व भी ।

डॉ. नरेन्द्र मोहन
दिल्ली विश्वविद्यालय
28.10.1985


राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की गतिविधयों और कार्यक्रम के विषय में प्रत्यक्ष रूप से जानकारी प्राप्त करने का अवसर मिला । पिछले 25 वर्शो का योगदान अमूल्य है । साधुवाद ।

परशुराम शर्मा
पूर्व निदेशक (राजभाषा विभाग)
भारत सरकार, नई दिल्ली
25.5.1985


संस्था ने शोधार्थियों के लिए जो व्यवस्था कर रखी है, वह सराहनीय है । लेखक के ठहरने के समुचित प्रयास को स्तुत्य मानता हूं व संस्था के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं ।
जेठमल व्यास
11.4.2003

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चर्चा में

विचारशीलता की कर्म स्थली : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़

सांस्कृतिक मूल्यों के संवर्द्धन व अनुरक्षण की भावना से स्थापित संस्था

संपर्क

राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
श्रीडूंगरगढ (बीकानेर) राज.

ईमैल: info@rbhpsdungargarh.com
वेबसाइट: www.rbhpsdungargarh.com

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