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राष्ट्रभाषा पुस्तकालय
परिचय- विचारशीलता की कर्म स्थली : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
मखमलिया रेत के टीलों से घिरा कस्बा श्रीडूंगरगढ़ जो लम्बे समय से सिने-जगत् का आकर्षण व व्यावसायिक केन्द्र रहा है, विगत वर्षों से, साहित्यकारों, लेखकों, विचारकों, चिंतकों, इतिहासविदों एवं भाषाविदों का सिरमौर या लाक्षणिक रूप में छोटी काशी बना हुआ है। इस विचार-क्रान्ति का समूचा श्रेय जाता है स्थानीय संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति को।
वर्ष 1961 में पुरोधाओं की मित्र-मण्डली द्वारा चाय की चुस्कियों के संग महज सांस्कृतिक वातावरण निर्माण के लिए गठित इस संस्था के स्थापक विचारकों ने भी शायद यह कल्पना नहीं की थी कि उनका यह तात्कालिक सांस्कृतिक दृष्टिकोण कालान्तर में एक वट-वृक्ष का रूप लेकर समूचे देश के शब्द-कमियों का अनुराग केन्द्र व विचार स्थल बन जायेगा।
रद्दी करार दिये गये कागजों की छंटाई कर तराशी गई खाली कतरनों से प्रारम्भ हुई इस संस्था का लगभग एक बीघा भूमि पर निर्मित ‘संस्कृति भवन’ आज बरबस ही आमन्त्रित करता प्रतीत होता है। राष्ट्रीय उच्चीकृत राजमार्ग संख्या 11 (बीकानेर-जयपुर) पर अवस्थित संस्था भवन में वर्तमान में एक लाइब्रेरी हॉल, एक वाचनालय कक्ष, एक शोधार्थी रीडिंग रूम, एक कार्यालय कक्ष, एक भण्डार कक्ष वातानुकूलित विश्राम कक्ष, कम्प्यूटर कक्ष, शौचालय-स्नानागार निर्मित है। आयोजनों हेतु (30×40 फुट) का खूबसूरत सभाकक्ष तो जैसे विचार अनुष्ठान का पर्याय ही बन गया है। भवन की भौतिक भव्यता आगन्तुक का सहज ही मन मोह लेती है।
संस्था के पुस्तकालय में भाषा, साहित्य, इतिहास, कला, शोध, सर्वेक्षण, बाल साहित्य आदि विधाओं से जुड़ी पन्द्रह हजार से अधिक पुस्तकें हैं। पुस्तकालय में प्रतिमाह 80 से अधिक साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक-पत्र-पत्रिकाएं पाठकों को पढ़ने के लिए मिलती हैं। सैकड़ों पाण्डुलिपियां (हस्तलिखित) धरोहर के रूप में मौजूद हैं।
सांस्कृतिक मूल्यों के संवर्द्धन व अनुरक्षण की भावना से स्थापित इस संस्था ने 55 वर्ष के काल में विभिन्न क्षेत्रों में अकल्पनीय कार्य प्रगति की है। प्रभावी नियन्त्रण व कार्यान्वयन के दृष्टिगत संस्था ने भाषा, शोध, सर्वेक्षण, इतिहास व पुरातत्त्व-कला आदि विषयक कार्यों के लिए मरुभूमि शोध संस्थान प्रकोष्ठ एवं राजस्थानी भाषा सम्बन्धी कार्य के लिए राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ स्थापित कर रखी है। संस्था द्वारा वर्तमान में शोध की महत्त्वपूर्ण पत्रिका 'जूनी ख्यात' (सम्पादक : भंवर भादानी) एवं राजस्थानी लोक चेतना की त्रैमासिक 'राजस्थली' का नियमित प्रकाशन किया जा रहा है। संस्था द्वारा अभी तक प्रकाशित चार दर्जन से अधिक साहित्यिक कृतियां पाठकों में चर्चा का विषय रही है।
संस्था शिक्षा विभाग से शोध संस्थान के रूप में, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर से सम्बद्ध संस्था के रूप में, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली से मान्यता प्राप्त और राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर से सन्दर्भ केन्द्र के रूप में स्वीकृत है। इसके अलावा ICHR, दिल्ली; मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, दिल्ली; संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर; जवाहर कला केन्द्र, जयपुर; संस्कृति मंत्रालय,राजस्थान सरकार के अनेक कार्यक्रम संस्था द्वारा करवाये जा चुके हैं।
श्री विष्णु प्रभाकर, राजेन्द्र यादव, से.रा. यात्री, नामवरसिंह, यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र', हरीश भादानी सदृश सैकड़ों लब्ध-प्रतिष्ठ जन संस्था के हित-चिंतक रहे हैं। संस्था द्वारा प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को 'सहित्यश्री' की मानद उपाधि ख्यातनाम रचनाधर्मी को दी जाती है।
संस्था की पहचान व भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केन्द्रीय साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के संयोजक मालचन्द तिवाड़ी राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर में अध्यक्ष रहे श्री श्याम महर्षि (वर्तमान में साहित्य अकादमी, दिल्ली की सामान्य सभा के सदस्य भी) व राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर में सरस्वती सभा के सदस्य एवं वर्तमान में साहित्य अकादमी दिल्ली में राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के सदस्य रवि पुरोहित इसी मंच से जुड़े रहे हैं।
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विचारशीलता की कर्म स्थली : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
सांस्कृतिक मूल्यों के संवर्द्धन व अनुरक्षण की भावना से स्थापित संस्था